एन्जाइम(Enzymes) के बारे पूरी जानकारी | एन्जाइम किसे कहते है

एन्जाइम(Enzymes)
प्रस्तावना
जैव तन्त्र का अस्तित्व असंख्य विशिष्ट एवं जटिल किन्तु
क्रमबद्ध जैव रासायनिक क्रियाओं के समन्वय पर निर्भर है। एक जीवितकोशिका के भीतर कई रासायनिक क्रियाएँ दक्षतापूर्वक सामान्य तापक्रमपर होती रहती है। इनमें से कुछ क्रियाओं को कोशिका के बाहरतापक्रम, दाब, अम्लीयता एवं क्षारीयता की अति उच्च तथा उग्रपरिस्थितियों में ही करवाया जा सकता है । इसके अतिरिक्त इनकीदक्षता भी कोशिकीय क्रियाओं से बहुत कम होती है। कोशिकाओं मेंविभिन्न जैव रासायनिक क्रियायें कुछ अति सक्रिय कार्बनिक पदार्थों की
अल्प मात्रा की उपस्थिति में सम्पन्न होती है। ये पदार्थ जैव उत्प्रेरकों(Biocatalysts) की भांति व्यवहार करते हैं। इन्हें एन्जाइम अथवाप्रकिण्व कहते है। एन्जाइम रासायनिक अभिक्रियाओं की दर कोअभिकारकों (Reactants) की सक्रियण ऊर्जा कम करके बढ़ा देते हैं। कोशिकाओं में कुछ अभिक्रियाएं संश्लेषण प्रकार की होती है।जिनमें ऊर्जा की आवश्यकता होती है इन्हें उपचय अभिक्रियाएं(Anabolic processes) कहते हैं। जबकि कुछ अभिक्रियाएँविघटन प्रकार की होती हैं जिनमें ऊर्जा मुक्त होती हैं। इन्हें अपचय
अभिक्रिया (Catabolic processes) कहा जाता है। कोशिकाओंमें ये दोनों अभिक्रियाएँ मिलकर उपापचय पथों का निर्माण करती है।
एन्जाइम की सर्वस्वीकृत परिभाषा है-‘प्रोटीन प्रकृति के ऐसे
कार्बनिक पदार्थ जो जीवित कोशिकाओं में जैव उत्प्रेरक का कार्य
करते है, एन्जाइम कहलाते हैं।’
एन्जाइमों का इतिहास–
एन्जाइम की जैव उत्प्रेरक के रूप में पहचान बर्जिलियस
Bergelius, 1835) ने की। एडवर्ड बुकनर (Edward
3uchner) ने सर्वप्रथम यीस्ट की कोशिकाओं से जायमेज
EZymase) नामक एन्जाइम जटिल को खोजा। एन्जाइम शब्द कासर्वप्रथम प्रयोग विली कुहने (Willy Kuhne, 1878) ने यीस्टविलयन के किण्वन के लिए किया । जे.बी. सुमनर (J.B. Sumner,1926) ने सर्वप्रथम यूरिऐज एन्जाइम का विशुद्ध क्रिस्टलीय रूप प्राप्तकिया। सुमनर एवं नारथोप (Sumner and Northrope, 1930)ने सप्रमाण स्थापित किया कि समस्त एन्जाइम्स रासायनिक दृष्टि से
प्रोटीन होते हैं। सुमनर, नारथोप तथा स्टैनले को प्रोटीन सम्बन्धी कार्यके लिए 1947 में नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अप्रोटीनी
एन्जाइम (RNA के उत्प्रेरकीय अणु) की खोज सर्वप्रथम सेक एवंअल्टमेन (T.Cech and Altman) द्वारा की गई जिसे राइबोजाइम(Ribozyme) कहा गया है।
एन्जाइम की संरचना
सभी एन्जाइम प्रोटीन होते है परन्तु सभी प्रोटीन एन्जाइम नहीं है।राइबोजाइम (Ribozyme) नामक एन्जाइम RNA का बना होता है,जो RNA समबंधन (Splicing) में सहयोग करता है। कुछ एन्जाइम जैसे पेप्सिन, यूरिएज आदि पूर्ण रूप से प्रोटीन द्वारा निर्मित होते हैं,लेकिन अधिकांश एन्जाइमों में मुख्य घटक प्रोटीन के साथ अन्य
अप्रोटीन पदार्थ भी पाये जाते है जो प्रोटीन भाग की क्रियाशीलता के लिए आवश्यक होते है। इस प्रकार का एन्जाइम होलोएन्जाइम यापूर्णएन्जाइम (Holozyme) कहलाता है। होलोएन्जाइम का प्रोटीन वाला भाग एपोन्जाइम (Apoenzyme) तथा अप्रोटीन वाला भाग
सहकारक (Cofactor) कहलाता है सहकारक(Cofactor) को तीनप्रकार से विभेदित किया जा सकता है-
-चित्र 1-
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2-

(i) प्रोस्थेटिक समूह ( Prosthetic group) – जब
कार्बनिक प्रकृति का अप्रोटीन भाग एपोएन्जाइम से सघनता से एवंदृढ़तापूर्वक अनुबंधित रहता है, उसे प्रोस्थेटिक समूह कहते है। eg. साइटोक्रोम, फ्लेवो प्रोटीन
(ii) सह एन्जाइम (Co-enzyme) – जब अप्रोटीन भाग
एपोएन्जाइम से ढ़ीले अथवा आसानी से पृथक होने योग्य तथा पुनःसंलग्न होने योग्य रूप में अनुबंधित रहता है तो इस भाग को सह-एन्जाइम या को-एन्जाइम कहते है। जैसे-NAD, NADP, FAD,Co-A आदि।
(iii) सक्रियक (Activator)
अकार्बनिक प्रकृति का कोई धातु आयन हो तो उस सक्रियक कहते है
जब अप्रोटीन भाग
जैसे– Fe
होलो एन्जाइम = एपो एन्जाइम + अप्रोटीन भाग (कोफेक्टर)
(i) प्रोस्थेटिक समूह
(ii)सह-एन्जाइम
(iii) सक्रियक
होलो एन्जाइम से सह-एन्जाइम को डायालेसिस की प्रक्रिया द्वारा
आसानी से पृथक किया जा सकता है।
एपोएन्जाइम – यह एन्जाइम का प्रमुख भाग होता है। विभिन्न
एन्जाइमों में प्रोटीन अणुओं की लम्बाई भिन्न-भिन्न अमीनो अम्लोंका क्रम विशिष्ट होता है। प्रोटीन कोलाइडी होते है जिससे एन्जाइम कोप्रति इकाई आयतन, अधिक सतह क्षेत्रफल उपलब्ध होता है । एन्जाइमके प्रोटीन भाग (एपो-एन्जाइम) में एक या अधिक विशेष क्षेत्र होते है
जिन्हें सक्रिय स्थल (Active sites) कहते है। इन्हीं सक्रिय स्थलों सेआधारी अभिकारक बंधित होता है।

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