✳️जल अवशोषण की क्रिया विधि✳️
(Mechanism of water absorption)
क्लेमर ,(Kramer, 1949) के .अनुसार .पौधों में जल अवशोषण
दो प्रकार से होता है :-
1. निष्क्रिय, या, निश्चेष्ट जल अवशोषण (Passive
absorption of water)
2. सक्रिय जल अवशोषण (Active absorption of water)
“जब जल अवशोषण के कारक वाष्पोत्सर्जी पृष्ठ
(Transpiring surface) अर्थात् पत्तियों में स्थित होते हैं और जड़ की
कोशिकाएँ केवल मार्ग का कार्य करती हैं तो इसे निष्क्रिय जल अवशोषण कहते हैं। इसके विपरीत “जब अवशोषण के कारक जड़ में ही उपस्थित होते है व जड़ की कोशिकाएँ अवशोषण में सक्रिय भाग
लेती हैं तो इसे सक्रिय जल अवशोषण कहते हैं। दूसरे शब्दों में
निष्क्रिय अवशोषण हेतु आवश्यक बलों की उत्पत्ति पौधे के वायव भाग या प्ररोह में जबकि सक्रिय अवशोषण के लिए आवश्यक बलों की
उत्पत्ति मूल में होती है। अत: निष्क्रिय अवशोषण में मूल की भूमिका गौण जबकि सक्रिय अवशोषण में प्रमुख होती है।
💠निष्क्रिय या निश्चेष्ट जल अवशोषण की क्रियाविधि💠
(Mechanism of passive water absorption)
पौधों में जल अवशोषण की यह प्रमुख विधि है। अधिकांश पौधों द्वारा अवशोषित जल की 96% से 98% मात्रा इसी विधि द्वारा प्राप्त की जाती है। पौधों के वायव अंगों मुख्यतः पत्तियों से वाष्पोत्सर्जन की क्रिया के द्वारा होने वाली जल हानि से पत्तियों की शिराओं में उपस्थित जल कमी के कारण एक तनाव (खिंचाव) उत्पन्न हो जाता है। यह ऋणात्मव
तनाव क्रमश: तने के जल स्तम्भ से होते हुए मूलों तक पहुंचता है जिस मूलरोमों द्वारा मृदा से जल स्वतः ही मूल में खिंच आता है। इस प्रकार
निष्क्रिय अवशोषण में पौधे के किसी भी अंग की सक्रिय भूमिका नहीं होती है।
इस सिद्धांत के पक्ष में सबसे बड़ा प्रमाण यह हैं कि तीव्र वाष्पोत्सर्जन के समय जलावशोषण की क्रिया भी तीव्र होती हैं।
✳️सक्रिय जल अवशोषण की क्रियाविधि✳️
(Mechanism of active water absorption)
कुछ पौधों में अल्प मात्रा में जल का अवशोषण मूलों की सक्रियता अथवा मूलों में उत्पन्न धनात्मक बलों के द्वारा होता है। यह क्रिया अधिकतर उस समय होती है जब वाष्पोत्सर्जन बहुत कम अथवा
नहीं होता है जैसे रात्रि में। इस प्रकार सक्रिय जल अवशोषण में मूलों की प्रमुख भूमिका होती है। इस अवशोषण के लिए मूलों के जाइलम में
उपस्थित जल स्तम्भ में धनात्मक बल उत्पन्न होता है, जिसे मूलदाब
(Root pressure) कहते हैं । इस बल जैसे OP के द्वारा मूलें मृदा जल
को बलपूर्वक भीतर खींचती हैं अर्थात् अवशोषित करती हैं। सक्रिय जल अवशोषण के लिए ATP के रूप में ऊर्जा की आवश्यकता होती है जो
मूलों की श्वसनशील कोशिकाओं द्वारा प्रदान की जाती है। इस विधि द्वारा जल की अवशोषित मात्रा काफी कम अर्थात् कुल अवशोषित जल
की मात्रा की 2-4% होती है।
पादपों में जल का मार्ग (Pathway of water in plants) पादपों में जल, का प्रवेश मूल रोम (Root hairs) से होने के पश्चात् जड़ के ,अंदर जाइलम तक मुख्यत: निम्नांकित, तीन पथों से पहुंच
सकता है। जल का मूलरोम से जाइलम तक जल का प्रवाह पावीय प्रवाह (Lateral flow) कहलाता है।
(i) अपलवक या एपोप्लास्ट पथ (Apoplast Pathway)
(ii) संलवक या सिमप्लास्ट पथ (Symplast Pathway)
(iii) रसधानीय पथ (Vacuolar Pathway)
(i) अपलवक या एपोप्लास्ट पथ:-पादपों में जल का प्रवाह निर्जीव ,कोशिका भित्ति व कोशिकाओं, के मध्य उपस्थित अन्तर कोशिकीय अवकाशों के द्वारा होता है तो इस मार्ग को एपोप्लास्ट, पथ कहते हैं। जल का यह प्रवाह अनियंत्रित व विसरण के द्वारा होता है।
पादपों की जड़ों में पाए जाने वाली अन्तस्त्वचा की कोशिका भित्तियों में कैस्पेरियन पट्टिकाएँ (Casparian strips) पाई जाती हैं ने जिनमें सुबेरिन (Suberin) उपस्थित होता है जो जल के प्रति अपारगम्य