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[ प्राचीन भारतीय इतिहास के पुरातात्विक स्रोत ]
⏺️इतिहास को जानने के लिए इन सभी साधनों का उपयोग करनापड़ता है, जिनसे अतीत की गतिविधियों का विवरण प्राप्त होता है। इस प्रकार के साधनों को इतिहास के स्रोत या साक्ष्य अथवा प्रमाण कहा जाता है। भारत के इतिहास निर्माण के लिए उपलब्ध समस्त स्रोतों को दो भागों में विभक्त कर सकते हैं-
(1) पुरातात्विक स्रोत
(2) साहित्यिक स्रोत।
(1) पुरातात्विक स्रोत ➡️प्राचीन भारतीय इतिहास के पुरातात्विक स्त्रोत भारतीय इतिहास के निर्माण में पुरातत्व का महत्त्वपूर्ण स्थान है। पुरातत्व का अर्थ है, अतीत के बचे हुए अवशेषों के माध्यम से मानव क्रियाकलापों का अध्ययन करना। पुरातात्विक स्रोत निम्न हैं
⏺️अभिलेख 👉प्राचीन भारतीय इतिहास के निर्माण में अभिलेखों ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। ये अभिलेख पत्थर के स्तम्भों, स्तूपों, चट्टानों, गुफाओं, शिलाओं, ताम्रपत्रों, मन्दिरों की दीवारों तथा मूर्तियों पर उत्कीर्ण हैं । प्रारम्भिक अभिलेख पाली व प्राकृत भाषा में हैं तथा ये ई.पू. तीसरी सदी के हैं। इन अभिलेखों का वर्णन निम्न प्रकार है-
⏺️शिलालेख 👉शिला अर्थात् पत्थर की चट्टान पर लिखे गये लेख को शिलालेख कहा जाता है। सर्वप्रथम अशोक के
शिलालेख प्राप्त होते हैं जो ब्राह्मी तथा खरोष्ठी लिपि में हैं।
1837 ई. में जेम्स प्रिंसेप को सबसे पहले इन शिलालेखों को
पढ़ने में सफलता मिली थी। अशोक के शिलालेखों से उसके
प्रशासन, धर्म, नैतिक सिद्धान्तों एवं मानव-कल्याण के कार्यों
की जानकारी मिलती है। इसके अतिरिक्त कलिंग-नरेश
खारवेल का हाथीगुम्फा शिलालेख, रुद्रदामन का जूनागढ़
शिलालेख, पुष्यमित्र शुंग का अयोध्या शिलालेख आदि भारतीय इतिहास के निर्माण में सहायक सिद्ध हुए हैं।
⏺️स्तम्भ लेख 👉पत्थर के स्तम्भों पर लिखे गये स्तम्भ लेख
कहलाते हैं। ये भी शिलालेखों की भाँति प्राचीन भारतीय
इतिहास की जानकारी के महत्त्वपूर्ण एवं प्रामाणिक स्रोत हैं।
सर्वप्रथम अशोक के शासन काल में स्तम्भ लेख प्राप्त होते
हैं। अशोक के स्तम्भ लेखों से धर्म-प्रचार के लिए किए गए
उसके प्रयासों तथा प्रजा की भलाई के लिए किए गए उसके
कार्यों के बारे में जानकारी मिलती हैं।
⏺️ ताम्रपत्र लेख 👉ताँबे की पट्टी पर लिखा गया लेख ताम्रपत्र कहलाता है। प्राय: ये लघु आकार के दानपत्र होते थे जिनमें: राजाओं और सामन्तों द्वारा विभिन्न लोगों को दिये गए गाँवों, भूमि और राजस्व के दानों का विवरण रहता था। इनसे तत्कालीन शासकों तथा उनके वंशों का संक्षिप्त परिचय मिलता है। सौहगोरा ताम्रपत्र लेख से गुप्तकालीन भारतीय इतिहास की अच्छी जानकारी मिलती है।
⏺️गुहालेख 👉पहाड़ों के बीच गुफाओं में उत्कीर्ण लेख को
गुहा-लेख कहा जाता है। ये गुहा-लेख तत्कालीन धार्मिक
स्थिति पर प्रकाश डालते हैं। अशोक के उत्तराधिकारी दशरथ
के नागार्जुन गुहा लेख से भी तत्कालीन धार्मिक स्थिति की
जानकारी मिलती है। हमें गुहालेखों से सातवाहन राजवंश
की महत्त्वपूर्ण एवं प्रामाणिक जानकारी मिलती है। नानाघाट
गुहालेख से प्रारम्भिक सातवाहन-नरेशों के विषय में तथा
नासिक गुहालेख से प्रसिद्ध सातवाहन-नरेश गौतमी पुत्र
शातकर्णी के बारे में जानकारी मिलती है। चन्द्रगुप्त द्वितीय के
उदयगिरि गुहालेख से चन्द्रगुप्त द्वितीय की अभिलाषा और
सामरिक गतिविधियाँ जान पड़ती हैं।
⏺️मूर्ति लेख 👉भारत के विभिन्न स्थानों से मूर्ति लेख प्राप्त हुए हैं जिनसे प्राचीन भारतीय इतिहास के निर्माण में सहायता
मिलती है। इनसे तत्कालीन धार्मिक स्थिति, धार्मिक सहिष्णुता, शिल्पकला, वेशभूषा, शासकीय संरक्षण आदि की जानकारी मिलती है।
⏺️अरबी-फारसी अभिलेख 👉मुस्लिम शासकों ने प्रादेशिक
विजयों के दौरान विजय स्मारकों तथा मस्जिदों पर इस प्रकार
के लेख अंकित करवाये, जिससे हमें मुस्लिम शासकों तथा
उनकी तिथि का ज्ञान होता है। 1325 ई. के चित्तौड़ लेख से
हमें ज्ञात होता है कि अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ का नया
नाम खिज्रावाद रख दिया था।
⏺️मुद्रा लेख 👉मुद्रा लेखों से तत्कालीन शासकों तथा उनकी रुचियों आदि के बारे में जानकारी मिलती है। इनसे उस समय की सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी मिलती है।
-⏺️मुद्रा (सिक्के ) 👉प्राचीन भारतीय इतिहास के निर्माण में सिक्कों ने भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। ये सिक्के सोने, चाँदी, ताँबा, सोसा आदि धातुओं से बनाये जाते थे। सिक्कों पर राजाओं के नाम, उनकी उपाधियाँ, राजचिह्न, धर्मचिह्न, तिथि, प्रतीक चिह्न आदि अंकित होते हैं। इससे राजाओं एवं राजवंशों के काल-निर्माण में सहायता मिलती है। दो सौ ई. पूर्व से लेकर तीन सौ ईस्वी तक के भारतीय इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्रोत सिक्के ही हैं।
⏺️मुहरें 👉मुहरें राजकीय और व्यापारिक दोनों प्रकार की होती हैं। सर्वप्रथम हमें ऐसी मुहरें हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से प्राप्त होती हैं। सिन्धु घाटी में उपलब्ध मुहरों को व्यापारिक माना जा सकता है। इनका उपयोग व्यापारिक कार्यों एवं मिट्टी के बर्तनों पर मुहर लगाने के लिए किया जाता था। इन मुहरों से सैन्धव लोगों के धार्मिक जीवन एवं धार्मिक विश्वासों के बारे में भी जानकारी मिलती है। इनसे प्राचीन काल की कुंभकार कला एवं मूर्तिकला के स्तर पर भी प्रकाश पड़ता है। इन मुहरों से सैन्धव लोगों के अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों की भी जानकारी मिलती है, क्योंकि इन मुहरों का प्रयोग समुद्र द्वारा विदेशी व्यापार के लिए भी किया जाता था।
प्राचीन भारत में निगम और श्रेणी जैसे व्यापारिक संगठनों को
अपनी मुहरें बनाने का अधिकार था। इसी प्रकार अनेक राजाओं ने राजकीय मुद्रा के रूप में मुहरें बनाई थीं। उदाहरणार्थ, हर्षवर्धन की दो मुहरें प्राप्त हुई हैं—(1) सोनीपत मुहर तथा (ii) नालन्दा मुहर।
(2) साहित्यिक स्रोत।
प्राचीन भारत में विशाल साहित्य का सृजन हुआ तथा अनेक उच्च कोटि के ग्रन्थों की रचना की गई। भारत में वैदिक काल से इतिहास लेखक के प्रमाण मिलते हैं। वैदिक साहित्य में विभिन्न प्रकार के ऐतिहासिक लेखन मौजूद हैं। प्राचीन भारतीय साहित्य से हमें तत्कालीन राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक अवस्थाओं की जानकारी मिलती है। प्राचीन भारतीय इतिहास के साहित्यिक स्रोतों
को दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-
1. धार्मिक साहित्य तथा 2. ऐतिहासिक एवं समसामयिक साहित्य।
1. *धार्मिक साहित्य-👉
प्राचीन भारतीय धार्मिक साहित्य से हमें तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक जीवन के बारे में जानकारी मिलती है। धार्मिक साहित्य के अन्तर्गत *ब्राह्मण साहित्य, *बौद्ध साहित्य तथा *जैन साहित्य को सम्मिलित किया जा सकता है।
(क) ब्राह्मण साहित्य-
-⏺️वेद- 👉-ब्राह्मण साहित्य के प्राचीनतम ग्रन्थ वेद हैं। भारतीय परम्परा के अनुसार वेद सम्पूर्ण भारतीय जीवन, धर्म, साहित्य, कला, विज्ञान आदि का मूल स्रोत हैं । वेद चार हैं-ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा ‘अथर्ववेद । वेदों से प्राचीन आर्यों की सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा राजनीतिक स्थिति के बारे में जानकारी मिलती है। ऋग्वेद से
हमें आर्यों के प्रसार, उनके आन्तरिक संघर्षों, उनके राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक जीवन की जानकारी मिलती है। अथर्ववेद में आर्यों की सांस्कृतिक प्रगति का चित्र मिलता है।
⏺️ब्राह्मण-👉ब्राह्मण ग्रन्थों में वैदिक मन्त्रों तथा संहिताओं की गद्य में व्याख्या की गई है। प्रत्येक वेद के अपने-अपने ब्राह्मण ग्रन्थ हैं। ब्राह्मण ग्रन्थों से तत्कालीन राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन की जानकारी मिलती है। ऐतिहासिक जानकारी के लिए शतपथ ब्राह्मण सबसे उपयोगी है।
⏺️आरण्यक-👉आरण्यक ग्रन्थों की रचना वनों में रहने वाले संन्यासियों के प्रयोग तथा मार्गदर्शन के लिए की गई थी। इनमें यज्ञों के रहस्यों तथा दार्शनिक तत्त्वों का विवेचन किया गया है।
⏺️उपनिषद-👉उपनिषदों में ब्रह्म-ज्ञान अथवा आत्म-ज्ञान की विवेचना की गई है। इनमें जीव, जगत, ब्रह्म, मोक्ष प्राप्ति आदि का विवेचन किया गया है। उपनिषद आर्यों के दर्शन के मूलाधार हैं। इनमें यज्ञों के स्थान पर ज्ञान मार्ग का तथा बहुदेववाद के स्थान पर एक परम सत्ता का प्रतिपादन किया गया है। इनमें ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य, बृहदारण्यक, श्वेताश्वतर और कौषीतकि नामक उपनिपद उल्लेखनीय हैं। इनसे
आर्यों के धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक जीवन की जानकारी मिलती है।
⏺️सूत्र साहित्य-👉इसके निम्नलिखित तीन भाग हैं-
श्रौत सूत्र-इनमें यज्ञों से सम्बन्धित अनुष्ठान एवं कर्मकाण्डों
का विवेचन मिलता है।
⏺️गृह्य सूत्र-👉इनमें गृहस्थ जीवन से सम्बन्धित संस्कारों, अनुष्ठानों तथा मौलिक कर्तव्यों का वर्णन है।
२ धर्म सूत्र-इनमें वर्णाश्रम, पारिवारिक जीवन, राजनीतिक जीवन, दण्ड-व्यवस्था आदि का विवेचन किया गया है।
⏺️वेदांग-👉वेदों को समझाने के लिए वेदांगों की रचना की गई।वेदांग 6 हैं-(0) शिक्षा, (ii) कल्प, (iii) निरुक्त, (iv) व्याकरण,(v) छन्द तथा (vi) ज्योतिष।
⏺️ स्मृतियाँ-👉स्मृतियों में मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन के विविध कार्यों के नियमों एवं निषेधों का वर्णन मिलता है। स्मृतियों से प्राचीन भारत के सामाजिक एवं धार्मिक इतिहास की पर्याप्त जानकारी मिलती है। मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति, नारद स्मृति, बृहस्पति स्मृति, कात्यायन स्मृति, पाराशर स्मृति आदि प्रमुख स्मृतियाँ हैं।
⏺️महाकाव्य-👉रामायण तथा महाभारत प्राचीन भारत के महाकाव्य हैं। रामायण के रचयिता वाल्मीकि तथा महाभारत के रचयिता वेदव्यास थे। इन महाकाव्यों से भारत के सांस्कृतिक इतिहास पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। इन महाकाव्यों से तत्कालीन भारत की सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्थिति के बारे में पर्याप्त जानकारी मिलती है।
⏺️पुराण-👉पुराणों की संख्या 18 है। इन ग्रन्थों में महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक सामग्री है। पुराणों में पाँच विषयों का वर्णन है-(1) सृष्टि को उत्पत्ति किस प्रकार हुई, (2) सृष्टि का प्रलय किस प्रकार होता है, (3) देवताओं तथा ऋषियों की वंश तालिका का वर्णन, (4) काल के विविध मन्वन्तरों (महायुगों) का वर्णन तथा (5) प्राचीन राजवंशों का क्रमिक इतिहास । विष्णु पुराण’ में मौर्य वंश, ‘मत्स्य पुराण’ में आन्ध्र वंश तथा ‘वायु पुराण’ में गुप्त वंश के विषय में पर्याप्त विवरण मिलता है। यद्यपि पुराणों में कुछ त्रुटियाँ हैं, किन्तु
फिर भी ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोणों से पुराणों का
काफी महत्त्व है। प्राचीन भारत का सांस्कृतिक इतिहास लिखने के लिए पुण्ण बहुत उपयोगी हैं।
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