राजस्थान में पशु मेले जानिए विस्तार है

💠राजस्थान के प्रमुख पशु मेले💠
➡️राज्य भर में सभी जिलों और ग्रामीण स्तर पर लगभग
250 से अधिक पशु मेलों का प्रतिवर्ष आयोजन किया
जाता है। कला, संस्कृति, पशुपालन और पर्यटन की
दृष्टि से ये मेले अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होते हैं। देश-विदेश
के हजारों-लाखों पर्यटक इसके माध्यम से लोक कला
एवं ग्रामीण संस्कृति से रूबरू होते हैं। राज्य स्तरीय पशु
मेलों के आयोजनों में नगरपालिका और ग्राम पंचायतों
की ओर से पशुपालकों को पानी-बिजली, पशु चिकित्सा
व टीकाकरण की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है।
➡️सरकार की ओर से इन मेलों में समय-समय पर प्रदर्शनी और अन्य ज्ञानवर्द्धक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जता है।
➡️राज्य स्तरीय पशु मेलों में अधिकांश मेले लोक देवताओं एवं महान् पुरुषों के नाम से जुड़े हुए हैं। पशुपालन विभाग द्वारा आयोजित किए जाने वाले राज्य स्तरीय पशु मेलों का विवरण इस प्रकार है:-
💠श्री रामदेव पशु मेला (नागौर)💠
इस मेले के प्रारंभ के बारे में प्रचलित मान्यता है कि
मानसर गाँव के समतल भू-भाग पर रामदेवजी की मूर्ति
स्वतः ही उद्भुत हुई। श्रद्धालुओं ने यहाँ एक छोटा-सा
मंदिर बनवा दिया। यहाँ मेले में आने वाला पशुपालक इस मंदिर में जाकर अपने पशुओं के स्वास्थ्य की मनौती मांगका ही खरीद-फरोख्त किया करते है। आजादी के बाद से मेले की लोकप्रियता को देखकर राज्य के पशुपालन विभाग ने इसे राज्य स्तरीय पशु मेलों में शामिल किया तथा फरवरी,1958 से पशुपालन विभाग इस मेले का संचालन कर रहा है। यह पशु मेला प्रतिवर्ष नागौर शहर से 5 किलोमीटर दूर मानसर गाँव में माघ शुक्ला । से माघ शुक्ला 15 तक लगता है। मारवाड़ के लोकप्रिय नरेश स्व. श्री उम्मेदसिंह जी को इस मेले का प्रणेता माना जाता है। इस मेले में नागौरी नस्ल के बैलों की बड़ी मात्रा में विक्री होती है।
💠श्री मल्लीनाथ पशु मेला, तिलवाड़ा ( बाड़मेर)💠
यह पशु मेला वीर योद्धा रावल पल्लीनाथ की स्मृति
में आयोजित होता है। वि.स. 1431 में मल्लीनाथ के
गद्दी पर आसीन होने के सुअवसर पर एक विशाल
समारोह का आयोजन किया गया । जिसमें दूर-दूर से
हजारों लोग शामिल हुए। आयोजन की समाप्ति पर लौटने के पहले इन लोगों ने अपनी सवारी के लिए ऊंट, घोड़े और रथों के सुडौल वैलों का आपस में आदान-प्रदान किया तथा यहीं से इस मेले का उद्भव हुआ। इस मेले का संचालन पशुपालन विभाग ने सन् 1957 में संभाला। यह मेला प्रतिवर्ष चैत्र बुदी ग्यारस से चैत्र सुदी ग्यारस तक बाड़मेर जिले की पचपदरा तहसील के तिलवाड़ा गाँव में लूनी नदी पर लगता है। इस पशु मेले में
सांचौरी नस्ल के बैलों के अलावा बड़ी संख्या में मालानी
नस्ल के घोड़ों और ऊंटों की भी बिक्री होती है।
💠श्री बलदेव पशु मेला, मेड़ता सिटी (नागौर)💠
यह पशु मेला मेड़ता सिटी में चैत्र सुदी-1 से चैत्र सुदी-
15 तक आयोजित होता है। इस मेले में अधिकांशत:
नागौरी बैलों की बिक्री होती है। यह पशु मेला प्रसिद्ध
किसान नेता श्री बलदेव रामजी मिधा की स्मृति में
अप्रैल, 1947 से राज्य का पशुपालन विभाग द्वारा संचालित कीया जा रहा है।
💠श्री वीर तेजाजी पशु मेला, परबतसर (नागौर)💠
यह पशु मेला लोक देवता वीर तेजाजी की याद में भाद
शुक्ल पक्ष दशमी (तेजा दशमी) को भरता है। पशुपालन
विभाग ने इस मेले की यागडोर सन् 1957 में अपने हाथ
में ली। यह पशु मेला आमदनी के लिहाज से प्रदेश का
सबसे बड़ा मेला है। विक्रम संवत् 1791 में जोधपुर के
महाराजा अजीतसिंह ने यहाँ तेजाजी का देवल बनाकर
एवं उनकी मूर्ति स्थापित कर इस पशु मेले की शुरूआत
की थी। यह पशु मेला नागौरी बैलॉ एवं बीकानेरी ऊंटों के
क्रय-विक्रय के लिए प्रसिद्ध है।
💠महाशिवरात्रि पशु मेला (करौली)💠
करौली जिले में भरने वाला यह पशु मेला राज्य स्तरीय
पशु मेलों में से एक है। इस पशु मेले का आयोजन प्रति
वर्ष फाल्गुन कृष्णा 14 तक किया जाता है। शिवरात्रि के
पर्व पर आयोजित होने से इस पशु मेले का नाम शिवरात्रि पशु मेला पड़ गया है। इस मेले के आयोजन का प्रारंभ रियासात काल में हुजा था। इस मेले में हरियाणा नस्ल पशुओं को बिक्री होती है। राजस्थान के अलावा उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के व्यापारी भी इस मेले में आते हैं मेला समाप्त हो जाने के करीब एक सप्ताह बाद इसी स्थान पर माल मेला भरता है जिसमें करौलो कस्वेचका व्यापारी वर्ग अपनी दुकानें लगाते हैं और ग्रामीण क्षेत्र के कस्बे के लोगों द्वारा इस मेले में आवश्यक वस्तुओं को खरोदा जाता है। सुना जाता है कि इस माल मेले में रियासत के समय जवाहरात को दुकानें भी लगायो जातो ची।
💠गोमती सागर पशु मेला, झालरापाटन (झालावाड़)💠
झालावाड़ जिले के झालरापाटन कस्बे में यह पशु मेला
प्रतिवर्ष वैशाख सुदी तेरस से जेठ बुदी पंचम् तक गोमती
सागर के पवित्र तट पर भरता है। यह पशु मेला हाड़ोतो
अंचल का सबसे बड़ा एवं प्रसिद्ध मेला है। पशुपालन विभाग मई, 1959 से इस पशु मेले को आयोजित कर रहा है।
💠श्री गोगामेड़ी पशु मेला (गोगामेड़ी)💠
गोगामेड़ी राजस्थान के पांच पोरों में से एक पोर तथा लोक देवता गोगाजी का समाधि स्थल है। यह स्थान वर्तमान में हनुमानगढ़ जिले को नोहर तहसील में है। यहाँ प्रतिवर्ष श्रावण सुदी पूनम से भादवा सुदी पूनम तक पशु मेले का आयोजन होता है। इस पशु मेले के संचालन का काम पशु पालन विभाग द्वारा अगस्त, 1959 से हो रहा है।
💠श्री जसवंत प्रदर्शनी एवं पशु मेला (भरतपुर)💠
भरतपुर रियासत के स्व. महाराजा जसवंतसिंह जी को
याद में इस प्रदर्शनी तथा पशु मेले का आयोजन होता है।
प्रतिवर्ष यह पशु मेला आसोज सुदी पंचम से आसोज
सुदी चौदस तक लगता है।
इस मेले में हरियाणा नस्ल के वैलों का क्रय-विक्रय होता
है। अक्टूबर, 1958 से पशुपालन विभाग इस पशु मेले
को आयोजित कर रहा है।
💠श्री चंद्रभागा पशु मेला, झालरापाटन (झालावाड़)💠
झालावाड़ जिले के झालरापाटन कस्बे में यह पशु मेला
हर साल कार्तिक सुदी ग्यारस से मगसर बुदी पंचम् तक
भरता है। इस पशु मेले में मालवी नस्ल के बैलों की भारी
तादाद में खरीद होती है। पशुपालन विभाग द्वारा इस मेले का संचालन नवम्बर, 1958 से हो रहा है।
💠पुष्कर पशु मेला, पुष्कर (अजमेर)💠
पुष्कर में प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ला अष्टमी से मार्गशीर्ष कृष्णा दूज तक भरने वाले इस मेले के अवसर पर जिला प्रशासन द्वारा एक तरफ जहाँ श्रद्धालुओं के स्नान करने की व्यवस्था की जाती है, वहीं दूसरी तरफ पशुपालन विभाग की ओर से पशु मेले का आयोजन तथा पर्यटन विकास निगम विदेशी सैलानियों के ठहरने, मनोरंजन हेतु विभित्र खेल-कूदों तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों को आयोजित करता है। वर्तमान में यह मेला अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हो चुका है। इस पशु मेले में गीर नस्ल के वैलों, ऊँटों व घोड़ों को विक्री होती है। पशुपालन विभाग द्वारा इस मेले का संचालन सन् 1963 से हो रहा है।

Leave a Comment